Income tax on share trading profit in india – भारत में पिछले 2 से 3 वर्षो में करीब 7 करोड़ से भी ज्यादा नए डीमैट अकॉउंट खुले है, इससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि अब भारत के लोगों में भी स्टॉक मार्केट में पैसे इन्वेस्ट करने का ट्रेंड बढ़ने लगा है।
लेकिन, स्टॉक मार्केट में पैसे इन्वेस्ट करने का मतलब यह नहीं है कि आपको यहाँ से सिर्फ प्रॉफिट ही हो, आपको काफी ज्यादा नुकसान भी हो सकता है। लेकिन, प्रॉफिट या लॉस दोनों ही केस में आपको इनकम टैक्स रिटर्न भरने के बारे में नहीं भूलना चाहिए।
स्टॉक मार्केट में लेंन – देन करने के बाद भी आप अपनी इनकम टैक्स रिटर्न फाइल नहीं करते है, तो ध्यान रखिये इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की नजर आपके ऊपर बनी हुई है, वह कभी भी आपको टैक्स नोटिस भेज सकता है।
स्टॉक मार्केट में आप शेयर्स की ट्रेडिंग, इन्वेस्टमेंट या डिविडेंड के जरिये पैसे कमा सकते है। लेकिन ध्यान रखिये पैसे कमाने के इन तीनो तरीकों में इनकम टैक्स की रेट्स और कैलकुलेशन अलग – अलग होगी।
इसलिए, अगर आप शेयर मार्केट में इन्वेस्टमेंट के साथ – साथ इससे होने वाली इनकम पर टैक्स रूल्स के बारे में भी जानते है, तो यह आपके लिए ही बेहतर होगा। क्योकि सहीं टैक्स नॉलेज होने पर आप प्रॉपर टैक्स प्लानिंग करके अपना टैक्स भी बचा सकते है और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की बिना मतलब की जाँच – पड़ताल से भी बच सकते है ।
शेयर मार्केट से होने वाली इनकम को आप बिज़नेस, कैपिटल गेन और अन्य सोर्सेज की इनकम के तौर पर अपनी इनकम टैक्स रिटर्न में शामिल कर सकते है। इन सभी हेड में आपकी इनकम कब रिपोर्ट की जाएगी इसके बारे में हम आगे चर्चा करेंगे।
आज के आर्टिकल (income tax on share trading profit in india) में हम कुछ पॉइंट्स पर चर्चा करेंगे, जैसे –
- शेयर मार्केट में ट्रेडर और इन्वेस्टर का कांसेप्ट क्या है ?
- शेयर मार्केट की इनकम को टैक्सेशन के हिसाब से कैसे अलग किया जाता है ?
- शेयर्स से कमायी गयी इनकम को इनकम टैक्स रिटर्न में किस हेड में रिपोर्ट किया जायेगा और कौनसा आईटीआर फॉर्म भरा जायेगा।
- शेयर मार्केट की इनकम पर टैक्सेशन किस प्रकार किया जाता है ?
- शेयर ट्रेडिंग करने पर ऑडिट के रूल्स क्या है ?
- स्टॉक मार्केट में ट्रेडिंग या इन्वेस्टमेंट से नुकसान होने पर इनकम टैक्स के क्या रूल्स है ?
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Table of Contents
शेयर मार्केट में ट्रेडर और इन्वेस्टर कौन होते है ?
यदि आप शेयर मार्केट में पैसे इन्वेस्ट करते है, तो आपको 2 तरीकों से देखा जाता है-
- आप एक ट्रेडर है, या
- आप एक इन्वेस्टर है
स्टॉक मार्केट से होने वाली इनकम के सही टैक्सेशन के लिए यह जानना जरुरी है कि आप एक ट्रेडर है या एक इन्वेस्टर। क्योकि दोनों के लिए इनकम टैक्स में अलग -अलग इनकम के हेड बताये गए है और टैक्स की रेट भी अलग -अलग है।
यदि स्टॉक मार्केट में पैसे लगाने की आपकी वजह यह है कि आप किसी शेयर को खरीद कर उन्हें लम्बे समय तक अपने पास रखना चाहते है और उन पर डिविडेंड की इनकम कमाना चाहते है या बाद में उन्हें बेचकर कुछ प्रॉफिट चाहते है, तो आप एक इन्वेस्टर है।
इन्वेस्टर का मतलब है कि आप जब किसी शेयर्स को खरीदते है, तो आपकी इंटेंशन उन्हें लॉन्ग पीरियड के लिए अपने पास रखने की होती है। आपकी इसे तुरंत बेचने की मंशा नहीं होती है।
अगर आप इन्वेस्टर है तो आपको उन शेयर्स से जो फायदा या नुकसान होता है, वह आपको कैपिटल गेन हेड में रिपोर्ट करना होगा। इसके बाद आपको इस प्रॉफिट को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन और शार्ट टर्म कैपिटल गेन में बांटना होगा।
इसी तरह शेयर्स से नुकसान होने पर इन्हे शार्ट टर्म कैपिटल लॉस और लॉन्ग टर्म कैपिटल लॉस में बाँटना होगा।
आप एक ट्रेडर तब माने जाओगे, जब आप शेयर मार्केट में ज्यादा ट्रेड करते है या कम समय के लिए ट्रेड करते है । इस केस में आपकी इनकम बिज़नेस हेड में रिपोर्ट की जायेगी।
इसके अलावा, यदि आपकी कुल इनकम में शेयर्स से होने वाली इनकम काफी अधिक है या materiality है, तो इसे कैपिटल गेन की इनकम न मानकर बिज़नेस इनकम माना जायेगा ।
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शेयर मार्केट की इनकम को टैक्सेशन के हिसाब से अलग कैसे किया जाता है ?
स्टॉक मार्केट से होने वाली इनकम को या तो कैपिटल गेन की इनकम माना जाता है या बिज़नेस इनकम। आपके लिए यह कैपिटल गेन या बिज़नेस की इनकम होगी, यह आपके ट्रेडर या इन्वेस्टर होने पर डिपेंड करता है।
एक व्यक्ति शेयर मार्केट में 2 टाइप्स से इन्वेस्टमेंट करता है –
- डिलीवरी बेस्ड – इसमें शेयर्स की डिलीवरी आपके demat account में की जाती है।
- नॉन डिलीवरी बेस्ड – इसमें आपको शेयर्स की डिलीवरी नहीं दी जाती है।
यदि आप शेयर्स में नॉन डिलीवरी बेस्ड इन्वेस्टमेंट करते है, तो यह हमेशा आपकी बिज़नेस इनकम समझी जायेगी और इसे इनकम टैक्स रिटर्न में बिज़नेस इनकम दिखाना होगा।
डिलीवरी बेस्ड इन्वेस्टमेंट में आपकी इनकम बिज़नेस या कैपिटल गेन में से कुछ भी हो सकती है, जो कि डिपेंड करता है कि आप ट्रेडर है या इन्वेस्टर।
डिलीवरी बेस्ड या नॉन डिलीवरी बेस्ड ट्रेडिंग क्या होती है ?
स्टॉक मार्केट में आप शेयर्स की डिलीवरी लेकर या बिना डिलीवरी लेकर ट्रेडिंग कर सकते है।
अगर आप शेयर्स की डिलीवरी लेते है, शेयर्स आपके डीमैट अकाउंट में डिलीवर हो जाते है और यह तब तक आपके डीमैट अकॉउंट में रहते है , जब तक आप इन शेयर्स को बेच नहीं देते है। लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर द्वारा डिलीवरी बेस्ड ट्रेडिंग काफी अधिक की जाती है। डिविडेंड की इनकम भी डिलीवरी बेस्ड ट्रेडिंग में ही होती है।
नॉन डिलीवरी बेस्ड ट्रेडिंग में आपके डीमैट अकॉउंट में शेयर्स की डिलीवरी नहीं की जाती है। ऐसे ट्रांजेक्शन एक दिन के लिए ही वैलिड रहते है।
इस तरह की ट्रेडिंग 2 टाइप्स होते है –
- नॉन – डिलीवरी बेस्ड – इसमें इंट्रा डे (intraday trading ) को शामिल किया गया है।
- डिलीवरी बेस्ड – इसमें कैश या डिलीवरी ट्रेडिंग, future या option में की गयी ट्रेडिंग को शामिल किया जाता है।
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इंट्रा डे ट्रेडिंग क्या होती है ? ( what is intraday trading )
किसी एक दिन में स्टॉक को खरीदने और बेचने को इंट्रा डे ट्रेडिंग कहा जाता है। अगर आप किसी स्टॉक को सुबह खरीदते है और शाम को बेचते है या सुबह बेचते है और शाम को वापस खरीद लेते है तो यह इंट्रा डे ट्रेडिंग मानी जाती है।
इंट्रा डे ट्रेडिंग में आपको शेयर्स की डिलीवरी नहीं दी जाती है। इंट्रा डे ट्रेडिंग करने वाले व्यक्ति की इंटेंशन उस स्टॉक को लम्बे समय तक अपने पास रखने की नहीं होती। वह सिर्फ किसी एक दिन में शेयर्स की प्राइज में उतार -चढ़ाव (movements ) से ही earning करना चाहता है।
यदि कोई शेयर किसी particular day को ख़रीदा जाता है, लेकिन उसे same day नहीं बेचा जाता, तो उसे इंट्रा डे ट्रेडिंग नहीं कहा जायेगा।
जब कोई व्यक्ति किसी शेयर को खरीदता है ,तो उसे उसी समय यह बताना होता है कि वह इंट्रा डे (intraday ) में इन्वेस्ट करेगा या फिर डिलीवरी बेस्ड शेयर में।
इंट्रा डे ट्रेडिंग से हुई इनकम या लॉस को हमेशा आपके बिज़नेस या प्रोफेशन हेड की इनकम में रिपोर्ट किया जायेगा। इंट्रा डे ट्रेडिंग के प्रॉफिट और लॉस को आपकी स्पेकुलेशन (speculation ) बिज़नेस एक्टिविटी के प्रॉफिट/ लॉस माना जायेगा। इसका मतलब यह हुआ कि यह आपके नार्मल बिज़नेस के प्रॉफिट या लॉस की तरह नहीं है।
इंट्रा डे ट्रेडिंग से हुए प्रॉफिट या लॉस पर टैक्स ट्रीटमेंट क्या होगा ?
इंट्रा डे ट्रेडिंग से आपको प्रॉफिट या लॉस कुछ भी हो सकता है। अगर इससे आपको प्रॉफिट होता है, तो इस प्रॉफिट को इनकम टैक्स रिटर्न में स्पेकुलेशन बिज़नेस के प्रॉफिट के तौर पर रिपोर्ट करना होगा। इसके बाद यह आपके ऊपर एप्लीकेबल स्लैब रेट के आधार पर टैक्सेबल होगा।
इंट्रा डे ट्रेडिंग से होने वाली इनकम की कैलकुलेशन में आप भुगतान किये गए अन्य खर्चे जो कि आपने इस intraday trading से इनकम को करने में किये है उनकी छूट ले सकते है , जैसे – ब्रोकरेज, इंटरनेट & फ़ोन बिल्स, डेप्रिसिएशन, सैलरी, ऑफिस रेंट etc .
आपकी इनकम इंट्रा डे ट्रेडिंग से हुई इनकम और अन्य इनकम बेसिक एग्जेम्पशन लिमिट से कम है, तो आपको कुछ भी टैक्स नहीं देना होगा।
इसके अलावा 5 लाख तक की इनकम तक आप सेक्शन 87A की टैक्स रिबेट क्लेम कर सकते है। नई टैक्स रिजीम में यह लिमिट 7 लाख (A.Y. 2024-25 से एप्लीकेबल ) तक की है।
लेकिन, आपको इंट्रा डे ट्रेडिंग में कोई लॉस होता है, तो इसे आप अपने दूसरे स्पेकुलेशन बिज़नेस की इनकम से सेट -ऑफ कर सकते है। अगर सेट – ऑफ नहीं कर पाते है, तो इसे आगे 4 वर्षो तक कैरी फॉरवर्ड किया जा सकता है।
ध्यान रखे इस लॉस को सिर्फ स्पेकुलेशन बिज़नेस के प्रॉफिट से ही सेट – ऑफ किया जा सकता है, किसी नॉन – स्पेकुलेशन बिज़नेस से नहीं।
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future या option में ट्रेडिंग – डिलीवरी बेस्ड
फ्यूचर या ऑप्शन या कैश या डिलीवरी में की गयी ट्रेडिंग को डिलीवरी बेस्ड शेयर्स में की गई ट्रेडिंग माना जाता है, क्योकि इसमें आपको शेयर्स की डिलीवरी दी जाती है।
शेयर्स को आपके demat account में आने में T+2 working day लगते है। जैसे आप मंगलवार को शेयर खरीदते है, तो यह शेयर गुरुवार को आपके डीमैट अकॉउंट में आयेंगे।
फ्यूचर या ऑप्शन में की गयी ट्रेडिंग की इनकम को आपके बिज़नेस से होने वाली इनकम माना जा सकता है, जबकि कैश या डिलीवरी ट्रेडिंग से होने वाली इनकम को कैपिटल गेन या बिज़नेस की इनकम माना जा सकता है।
यदि, इसे कैपिटल गेन की इनकम माना जाता है, तो इसे आगे शार्ट टर्म कैपिटल गेन या लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन की इनकम में डिवाइड किया जाता है।
और, यदि इसे बिज़नेस की इनकम माना जाता है , तो इसे नॉन स्पेकुलेशन बिज़नेस माना जायेगा। अगर बिज़नेस इनकम माना जाता है तो इस इनकम को आपकी कुल इनकम में शामिल किया जायेगा और स्लैब रेट के हिसाब से टैक्स लगाया जायेगा।
ध्यान रखे फ्यूचर या ऑप्शन में की गयी ट्रेडिंग के प्रॉफिट या लॉस को नॉन – स्पेकुलेशन बिज़नेस के प्रॉफिट लॉस माना जायेगा। इसलिए इंट्रा डे ट्रेडिंग के लॉस को फ्यूचर या ऑप्शन के प्रॉफिट से या फ्यूचर ऑप्शन के लॉस को इंट्रा डे ट्रेडिंग के प्रॉफिट सेट ऑफ़ नहीं किया जा सकेगा।
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शेयर्स से होने वाले प्रॉफिट और लॉस की रिटर्न में रिपोर्टिंग और आईटीआर फॉर्म ।
स्टॉक मार्केट से कमाई गयी इनकम को कैपिटल गेन या बिज़नेस की इनकम में रिपोर्ट किया जाता है। यदि आप एक ट्रेडर है तो आपकी इनकम बिज़नेस इनकम समझी जाएगी और यदि आप इन्वेस्टर है तो आपकी इनकम कैपिटल गेन की इनकम समझी जायेगी।
इंट्रा डे की इनकम को स्पेकुलेशन बिज़नेस और फ्यूचर और ऑप्शन की इनकम को नॉन – स्पेकुलेशन बिज़नेस की इनकम माना जायेगा।
यदि आपकी शेयर मार्केट में ट्रेडिंग करने से इनकम होती है तो आपके द्वारा ITR 2, ITR 3 या ITR 4 भरा जा सकता है।
शेयर मार्केट से इनकम के सम्बन्ध में कोनसी ITR आपके लिए एप्लीकेबल होगी इसे हम 3 तरीके से देखेंगे –
- शेयर को बेचने से हुई इनकम को आप कैपिटल गेन हेड में रिपोर्ट करते है – इस केस में आपके लिए ITR 2 एप्लीकेबल होगा।
- shares को बेचने से हुई इनकम को आप बिज़नेस इनकम मानते है – तो इस केस में आपके द्वारा ITR 3 या ITR 4 भरा जा सकता है।
- यदि, शेयर मार्केट में ट्रेडिंग के साथ आपकी सैलरी से भी इनकम होती है – तो इसे केस में आपके द्वारा ITR 3 भरा जायेगा।
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बिज़नेस इनकम होने पर ITR 3 या ITR 4 कब भरा जायेगा ?
यदि आपकी शेयर मार्केट से इनकम होती है और आप इसे ITR में बिज़नेस इनकम के तौर पर दिखाते है। तो इस केस में आपके पास 2 ऑप्शन होते है –
- आप इस इनकम को normal business की इनकम दिखाये, या
- आप इसे presumptive taxation scheme में बिज़नेस की इनकम दिखाये
यदि आप इसे नार्मल बिज़नेस की इनकम में दिखाते है तो आपके द्वारा ITR 3 फाइल जायेगी। और यदि आप इसे presumptive taxation scheme में दिखाते है तो आपके द्वारा ITR 4 फाइल की जायेगी।
लेकिन , यदि आप presumptive taxation scheme को अपनाते है और ITR 4 फाइल करते है , तो आने वाले 5 वर्षो तक आपको इस स्कीम को अपनाना पड़ेगा। यदि बीच में किसी वर्ष आप इसे नहीं अपनाते तो उसके बाद आने वाले 5 वर्षो तक फिर से इस स्कीम में आप रिटर्न नहीं भर सकते।
ध्यान रखे – फ्यूचर & ऑप्शन की इनकम को सेक्शन 44ad की Presumptive taxation scheme में रिपोर्ट नहीं करे और अगर रिपोर्ट करते है, तो अपने एक्चुअल प्रॉफिट को दिखाए न कि 6 % प्रॉफिट को। एक्चुअल प्रॉफिट को नहीं दिखाने से इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से इनकम टैक्स नोटिस प्राप्त करने की सम्भावना बढ़ जाती है।
शेयर मार्केट की इनकम पर टैक्सेशन किस प्रकार किया जाता है ? income tax on share trading profit in india
यदि आप शेयर मार्केट की इनकम को बिज़नेस इनकम में रिपोर्ट करते है, तो इस केस में कोई स्पेशल रेट से टैक्स नहीं लगाया जायेगा। यह इनकम आपके कुल इनकम में जोड़ दी जाएगी और स्लैब रेट के हिसाब से टैक्सेबल होगी।
लेकिन, यदि आप शेयर ट्रेडिंग की इनकम को कैपिटल गेन हेड में रिपोर्ट करते है , तो इसमें आपकी इनकम को आगे 2 पार्ट्स में अलग किया सकता है –
- लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन
- शार्ट टर्म कैपिटल गेन
लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन –
यदि, आप कोई स्टॉक 12 महीनो से अधिक समय तक होल्ड करते है , तो इस स्टॉक को बेचने पर होने वाला प्रॉफिट लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन या यदि लॉस होता है तो लॉन्ग टर्म कैपिटल लॉस माना जायेगा। होल्ड करने से मतलब शेयर्स को खरीदने से लेकर बेचने तक के पीरियड से है।
लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन को सेक्शन 10 (38 ) में इनकम टैक्स से exempt किया गया है, यदि यह एक फाइनेंसियल ईयर में 1 लाख तक है। एक लाख से अधिक के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर 10 % की रेट से टैक्स लगाया जायेगा।
शार्ट टर्म कैपिटल गेन –
यदि, किसी स्टॉक को आप 12 महीनों से कम समय तक होल्ड करते है , तो इस स्टॉक को बेचने पर होने वाला प्रॉफिट शार्ट टर्म कैपिटल गेन या यदि लॉस होता है तो शार्ट टर्म कैपिटल लॉस माना जायेगा।
शेयर्स को बेचने से होने वाले शार्ट टर्म कैपिटल गेन पर 15 % की रेट से टैक्स लगाया जाता है।
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शेयर मार्किट में ट्रेडिंग करने पर ऑडिट के रूल्स क्या है ?
यदि आपकी कुल इनकम एक निर्धारित अमाउंट से अधिक हो जाती है, तो आपकी इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 44AB में ऑडिट की जायेगी।
शेयर मार्केट की इनकम के होने पर ऑडिट के नियमो को हम 4 तरीके से समझेंगे –
- यदि आप शेयर मार्केट की इनकम को नार्मल बिज़नेस की इनकम में रिपोर्ट करते है – तो इस केस में अगर आपका टर्नओवर 1 करोड़ से अधिक हो जाता है तो आपको ऑडिट करवानी होगी। आपके लिए 10 करोड़ के टर्नओवर पर टैक्स ऑडिट की लिमिट एप्लीकेबल होगी अगर आपके कम से कम 95% ट्रांजेक्शन (इनकम /खर्चे ) कैश में नहीं है।
- यदि आप शेयर मार्केट की इनकम को presumptive टैक्सेशन स्कीम में बिज़नेस की इनकम रिपोर्ट करते है – तो इस केस में अगर आपका टर्नओवर 2 करोड़ से अधिक हो जाता है तो आपको ऑडिट करवानी होगी।
- presumptive business scheme को अपनाने पर आपको अपना प्रॉफिट कम से कम 6 % डिक्लेअर करना होता है यदि आप इससे कम प्रॉफिट डिक्लेअर करते है, तो आपको ऑडिट करवानी होगी।
- अगर आप intraday trading करते है और आपको इसमें कुछ नुकसान होता है। इसके अलावा आपकी कुछ अन्य इनकम है जो कि basic exemption limit से अधिक है तो आपको ऑडिट करवानी होगी। जैसे – आपको इंट्रा डे ट्रेडिंग से 10 हजार का नुकसान हुआ और आपकी सैलरी से 3 लाख 50 हजार की इनकम है तो आपको ऑडिट करवानी होगी।
इंट्रा डे ट्रेडिंग में टर्नओवर कैसे निकालेंगे ?
इंट्रा डे ट्रेडिंग का टर्नओवर अलग तरीके से निकाला जाता है। इसमें टर्नओवर निकालने के लिए एक intraday trader द्वारा पूरे वर्ष में हुए प्रॉफिट और loss को जोड़ दिया जाता है। जैसे –
यदि आपने एक वर्ष में इंट्रा डे ट्रेडिंग के ट्रांजैक्शन किये, जिनमे आपको –
- 2 लाख प्रॉफिट
- 1 लाख का loss हुआ।
इस केस में आपका कुल टर्नओवर 3 लाख माना जायेगा। यानि की loss के अमाउंट को भी आपके टर्नओवर में जोड़ा जायेगा।
share market में trading से नुकसान होने पर इनकम टैक्स के क्या रूल्स है ?
यदि आप शेयर मार्केट में ट्रेडिंग करते है, जिससे आपको कुछ loss होता है , तो आप इसे अपनी दूसरी इनकम (सैलरी को छोड़कर ) के साथ सेट ऑफ कर सकता है। सेट ऑफ करने के बाद भी कुछ loss का अमाउंट बच जाता है तो इसे आगे के 8 असेसमेंट ईयर तक carry forward किया जा सकता है।
लेकिन, यदि आपको इंट्रा डे ट्रेडिंग से कोई loss होता है , तो इसे speculation business loss कहा जायेगा और इसे सिर्फ 4 असेसमेंट ईयर तक ही carry forward किया जा सकता है। speculation business loss को सिर्फ speculation business प्रॉफिट से ही सेट ऑफ किया जा सकता है।
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