म्यूच्यूअल फंड क्या होते है और म्यूच्यूअल फंड के इन टाइप्स को जानने से पहले न करे इन्वेस्ट। what is mutual fund and its types

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what is mutual fund and its types
म्यूच्यूअल फंड क्या है और म्यूच्यूअल फंड के टाइप्स

what is mutual fund and its typesवर्तमान में लोगों का पैसों को सेव करने और इन्वेस्ट करने का रुझान बढ़ता जा रहा है । आज के लोग पैसों को इन्वेस्ट करने के फायदों को समझने लगे है और यह भी जानते है कि कैसे पैसों से ज्यादा पैसे बनाये जा सकते है, जिसकी वजह से वह अपना जीवन स्तर बेहतर कर सकते है ।

भारत मे अधिकतर लोग अपने पैसों को इन्वेस्ट करने के लिए सेविंग अकॉउंट को एक अच्छा ऑप्शन समझते है । कुछ लोगों  द्वारा इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए अपने पैसों को बैंक एफडी, गोल्ड, सिल्वर या रियल एस्टेट आदि में निवेश किया जाता है ।

लेकिन, वर्तमान में लोगों के बीच इन्वेस्टमेंट का एक नया टाइप ज्यादा प्रचलित हुआ है और वह है स्टॉक मार्केट ।

काफी लोग स्टॉक मार्केट में इन्वेस्ट करते है, जिनमें से कुछ लोग प्रॉफिट कमा पाते है और कुछ नही । 

स्टॉक मार्केट की तरह ही इन्वेस्टमेंट का एक और टाइप होता है, जो कि स्टॉक मार्केट से लिंक तो है लेकिन डायरेक्ट नही । इस इन्वेस्टमेंट के टाइप का नाम है म्यूच्यूअल फंड

म्यूच्यूअल फ़ंड भी इन्वेस्टमेंट का एक ऐसा टाइप है जिसमे काफी लोग इन्वेस्ट कर रहे है और यह लोगों के बीच काफी प्रचलित भी है ।

लेकिन, आज भी काफी लोगों को म्यूच्यूअल फंड के बारे में सही और पूरी जानकारी नही है, जिसकी वजह से वे काफी बार म्यूच्यूअल फंड की गलत स्कीम में निवेश कर देते है, जिससे उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ जाता है ।

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अधिकतर लोगों को म्यूच्यूअल फंड की सभी स्कीम की जानकारी नही होती है और उनके फाइनेंसियल एडवाइजर द्वारा जो स्कीम उन्हें बताई जाती है, उनके द्वारा उसी में निवेश कर दिया जाता है ।

अधिकतर फाइनेंसियल एडवाइजर लोगों को म्यूच्यूअल फ़ंड की ऐसी स्कीम में निवेश करवाते है, जिनमे उनका कमीशन ज्यादा हो । इसलिए म्यूच्यूअल फ़ंड में निवेश से पहले म्यूच्यूअल फ़ंड के बारे में जानना आवश्यक है ।

आज के आर्टिकल में हम म्यूच्यूअल फ़ंड क्या होता है , म्यूच्यूअल फंड्स के टाइप्स और दूसरे रूल्स के बारे में चर्चा करेंगे ।

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म्यूच्यूअल फ़ंड क्या होते है ? What is mutual fund 

what is mutual fund and its types

म्यूच्यूअल फ़ंड एक ऐसा फ़ंड हाउस होता है, जो कि अलग – अलग लोगों से पैसे लेकर उन पैसों को उन लोगों के behalf पर आगे निवेश करता है । जो भी लोग म्यूच्यूअल फ़ंड में निवेश करते है उन लोगों को म्यूच्यूअल फ़ंड द्वारा अपनी यूनिट दी जाती है, इसलिए इन लोगों को यूनिट होल्डर भी कहा जाता है ।

यूनिट होल्डर को दी गयी यूनिट उनके निवेश की मार्केट वैल्यू होती है । आपके पास जितनी ज्यादा यूनिट होगी आपके निवेश की वैल्यू भी उतनी ही अधिक होगी ।

म्यूच्यूअल फ़ंड को असेट्स मैनेजमेंट कंपनी (AMC) द्वारा मैनेज किया जाता है । यह AMC ही म्यूच्यूअल फ़ंड में आने वाले पैसे और उस पैसे को कहा निवेश करना है, का काम देखती है ।

एक AMC के तहत म्यूच्यूअल फंड्स की कई स्कीम संचालित की जाती है ।

जैसे – SBI म्यूच्यूअल फ़ंड एक असेट्स मैनेजमेंट कंपनी (AMC) है । इस AMC के तहत कई तरह के अलग – अलग म्यूच्यूअल फ़ंड ( SBI contra fund, SBI Flexicap fund, SBI Savings fund, SBI Gold fund, Sbi Magnum fund etc .) संचालित होते है ।

इन्वेस्टर द्वारा अपनी – अपनी पसंद और जरूरत के आधार पर म्यूच्यूअल फ़ंड को सलेक्ट करके उसमें निवेश शुरू किया जा सकता है । 

SBI म्यूच्यूअल फ़ंड के सभी म्यूच्यूअल फ़ंड को ऑपरेट और मैनेज करने की जिम्मेदारी SBI म्यूच्यूअल फ़ंड AMC की होती है । इन सभी अलग – अलग फंड्स को प्रोफेशनली सही तरीके से मैनेज करने के लिए AMC द्वारा अलग – अलग फंड मैनेजर भी नियुक्त किये जाते है । 

किसी भी म्यूच्यूअल फंड्स में निवेश शुरू करने से पहले आपको AMC का सलेक्शन करना होगा और उसके बाद उस AMC के म्यूच्यूअल फंड की किसी स्कीम में निवेश शुरू करना होगा ।

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म्यूच्यूअल फंड्स कहाँ निवेश करते है ? 

किसी भी म्यूच्यूअल फंड में निवेश करते समय आपने यह टैगलाइन जरूर देखी होगी ” Mutual Fund Investment are subject to market risk ” .

इस टैगलाइन का मतलब है कि म्यूच्यूअल फ़ंड से मिलने वाले रिटर्न स्टॉक मार्केट पर डिपेंड होते है, जिसका मतलब है कि अगर स्टॉक मार्केट पॉजिटिव रिटर्न देगा तो म्यूच्यूअल फ़ंड इन्वेस्टर को भी पॉजिटिव रिटर्न प्राप्त होंगे और स्टॉक मार्केट नेगेटिव रिटर्न देगा तो म्यूच्यूअल फ़ंड इन्वेस्टर को भी नेगेटिव रिटर्न ही प्राप्त होगा ।

यानी कि म्यूच्यूअल फ़ंड से मिलने वाले रिटर्न गारंटेड रिटर्न नही होते है, यह स्टॉक मार्केट की कंडीशन पर डिपेंड करते है ।

अब सबसे बड़ा सवाल यह आता है कि म्यूच्यूअल फ़ंड के रिटर्न मार्केट के रिटर्न पर डिपेंड क्यों होते है, तो इसका सीधा सा जवाब है क्योंकि म्यूच्यूअल फ़ंड भी स्टॉक मार्केट में ही निवेश करते है ।

अब जब म्यूच्यूअल फ़ंड खुद स्टॉक मार्केट में निवेश करते है, तो आपने इतनी माथापच्ची क्यों की। 

अगर शेयर मार्केट में ही निवेश करना है, तो आपने म्यूच्यूअल फ़ंड के माध्यम से निवेश का रास्ता क्यों पकड़ा, सीधा स्टॉक मार्केट में भी तो निवेश किया जा सकता था ।

इसको एक छोटे से example से समझते है, मान लीजिए आप कोई जॉब करते है । आपके पास ऑफिस जाने के 2 ऑप्शन है, पहला खुद के व्हीकल से या पब्लिक ट्रांसपोर्ट से ।

इन दोनों ऑप्शन में से आप वह ऑप्शन चूज करेंगे, जिसमे आप बेहतर फील करते है । अगर आपको कार चलानी आती है, ट्रैफिक रुल्स और भीड़ – भाड़ से आपको कोई परेशानी नही है और कार चलाने में आप अच्छा फील कर रहे है, तो आप अपनी कार से जा सकते है, कोई परेशानी नही होगी ।

लेकिन आपके पास खुद का व्हीकल नही है या कार चलानी नही आती है, तो इस केस में आपको पब्लिक ट्रांसपोर्ट का यूज़ करना ही होगा ।

इस एग्जाम्पल को आप म्यूच्यूअल फ़ंड पर भी लागू कर सकते है । अगर आपको स्टॉक मार्केट में निवेश की समझ है, आप अपने निवेश को ट्रैक कर सकते है और आपको लगता है कि आप अच्छी तरह से निवेश कर सकते है, तो आप सीधा स्टॉक मार्केट में निवेश कर सकते है ।

लेकिन, अगर शेयर मार्केट में आपको निवेश करना नही आता है या आप बार – बार अपने निवेश को ट्रैक नही करना चाहते या चाहते है कि पैसों को एक बार निवेश कर दिया जाए और इसके बाद इनको देखना नही पड़े, तो आपको म्यूच्यूअल फ़ंड के माध्यम से ही निवेश करना चाहिए ।

म्यूच्यूअल फ़ंड को फ़ंड मैनेजर द्वारा मैनेज किया जाता है, जिनके पास आपके निवेश को अच्छी तरह से मैनेज करने की काबिलियत होती है । इसके अलावा म्यूच्यूअल फंड द्वारा कंपनियों के शेयर बल्क में उठाये जाते है, जिसकी वजह से उन्हें अच्छी डील मिलने की संभावना भी ज्यादा रहती है ।

म्यूच्यूअल फ़ंड के टाइप्स क्या होते है ?  mutual fund types 

म्यूच्यूअल फ़ंड में निवेश से पहले इनके टाइप्स को जान लेना चाहिए और उसके बाद ही इनमें निवेश का फैसला लेना चाहिए ।

म्यूच्यूअल फ़ंड को इसके स्ट्रक्चर और म्यूच्यूअल फ़ंड की स्कीम के आधार पर अलग किया जाता है ।

स्ट्रक्चर के बेसिस पर म्यूच्यूअल फ़ंड के टाइप्स – 

म्यूच्यूअल फ़ंड को उसके स्ट्रक्चर के बेसिस पर 2 टाइप्स में अलग किया जाता है, (1) ओपन एंडेड फंड्स, (2) क्लोज एंडेड फंड्स 

ओपन एंडेड फंड्स (Open ended funds )

ये ऐसे फ़ंड होते है जिनमे कभी भी निवेश किया जा सकता है । इन फंड में ऐसा कोई टाइम पीरियड नही होता है, जिसमे आपको निवेश करना होता है ।

जब भी आपका म्यूच्यूअल फंड में निवेश का मन किया इनमें निवेश किया जा सकता है । इस तरह के म्यूच्यूअल फंड को ओपन एंडेड म्यूच्यूअल फ़ंड कहा जाता है ।

ये म्यूच्यूअल फ़ंड पूरे साल एक्टिव रहते है । इसलिए इनमें कभी भी निवेश और यूनिट्स को रिडीम किया जा सकता है । म्यूच्यूअल फंड में अपने इन्वेस्टमेंट को सेल करने को यूनिट्स रिडीम (redemption ) करना कहा जाता है । 

इन म्यूच्यूअल फंड्स की खुद की कोई maturity डेट नही होती है, जब तक इन फंड्स में इन्वेस्टर रहते है, ये चलते रहते है ।

म्यूच्यूअल फंड में 20/25 का रूल एप्लीकेबल होता है, जिसके अनुसार किसी भी ओपन एंडेड फंड को चलाने के लिए कम से कम 20 इन्वेस्टर होने चाहिए और किसी भी इन्वेस्टर का अधिकतम निवेश 25% से ज्यादा नही हो सकता है ।

क्लोज एंडेड फंड्स (Close ended funds) 

इन्वेस्टर के लिए क्लोज एंडेड फंड सब्सक्रिप्शन के लिए NFO पीरियड में ही अवेलेबल होते है । 

स्टॉक मार्केट में किसी नए शेयर को लिस्ट करने के लिए पहले कंपनी का आईपीओ (Initial public offer ) लाया जाता है, उसी तरह म्यूच्यूअल फंड में भी नए फंड को लाने के लिए उसका NFO (New Fund offer) लाया जाता है ।

NFO के समय ही यह बता दिया जाता है कि यह ओपन एंडेड फंड है या क्लोज एंडेड फंड

क्लोज एंडेड फंड में सिर्फ इसमे बताये गए पीरियड में ही निवेश किया जा सकता है, उसके बाद नही। इन फंड्स का एक Maturity पीरियड होता है, जिससे पहले इनमें से पैसे नही निकलवाये जा सकते है ।

यानी कि क्लोज एंडेड फंड में एक बार निवेश कर दिया तो फिर आपको आपके पैसे इन फंड्स की maturity के बाद ही प्राप्त होंगे ।

इसलिए लोगो के बीच मे ओपन एंडेड फंड ज्यादा प्रचलित है, क्योकि इनमें कभी भी निवेश और रिडेम्पशन लिया जा सकता है। 

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म्यूच्यूअल फंड की स्कीम के आधार पर म्यूच्यूअल फंड के टाइप्स 

स्ट्रक्चर के आधार पर अलग करने के बाद म्यूच्यूअल फंड को उनकी स्कीम के आधार पर अलग किया जाता है ।

इन्वेस्टर द्वारा म्यूच्यूअल फंड में इन्वेस्ट करने से पहले असेट्स मैनेजमेंट कंपनी को सलेक्ट करना होगा, उसके बाद ओपन एंडेड या क्लोज एंडेड म्यूच्यूअल फंड को चुनना होगा और उसके बाद म्यूच्यूअल फंड की इन स्कीम को चुनना होगा और सबसे आखिरी में इन स्कीम में से किसी एक फंड को चूज करना होगा ।

इक्विटी म्यूच्यूअल फंड (equity mutual fund) 

इक्विटी म्यूच्यूअल फंड ऐसे फंड होते है जो कि इक्विटी स्टॉक में निवेश करते है । सेबी म्यूच्यूअल फंड रेगुलेशन 1996 के अनुसार म्यूच्यूअल फंड्स को अपनी असेट्स का कम से कम 65% हिस्सा इक्विटी स्टॉक या इक्विटी रिलेटेड इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करना होता है ।

फंड मैनेजर द्वारा इन इक्विटी फंड्स को actively या passively मैनेज किया जाता है । इंडेक्स फंड passively मैनेज्ड फंड का एग्जाम्पल है । पैसिवली मैनेज्ड फंड से मतलब ऐसे फंड से होता है जिनके पोर्टफोलियो में फंड मैनेजर द्वारा काफी कम बदलाव किए जाते है ।

इक्विटी म्यूच्यूअल फंड को उनके इन्वेस्टमेंट स्टाइल के आधार पर आगे भी अलग किया जाता है, जैसे – लार्ज कैप फंड, मिड कैप फ़ंड, स्माल कैप, फ्लेक्सी कैप आदि ।

इन फंड्स का जो नाम होता है उसी तरह उनमें इन्वेस्ट भी किया जाता है । जैसे – लार्ज कैप फंड का अधिकतम निवेश सिर्फ लार्ज कैप कम्पनीज में होता है, मिड कैप फंड का मिड कैप कम्पनीज में और स्माल कैप फंड का स्माल कैप कम्पनीज में ।

ऐसे इन्वेस्टर जो एक छोटी राशि के साथ लंबे समय तक निवेश करना चाहते है, उन्हें equity म्यूच्यूअल फंड्स के साथ शुरुआत करनी चाहिए ।

इक्विटी म्यूच्यूअल फंड एक तरह के ग्रोथ फ़ंड होते है, जो कि लंबे समय मे कंपाउंडिंग की पावर के साथ बेहतर रिटर्न देते है । शार्ट टर्म में इन फंड्स में उतार – चढ़ाव काफी ज्यादा रहता है, जिसकी वजह से आपको नुकसान भी हो सकता है ।

लांग टर्म में इन फंड्स से 11% से 15 % के बीच का रिटर्न बन जाता है ।

अगर आप सिर्फ 1 या 2 वर्ष के लिए निवेश करना चाहते है, तो आपको इक्विटी म्यूच्यूअल फंड में निवेश नही करके डेट फंड में निवेश करना चाहिए ।

डेट म्यूच्यूअल फंड (Debt Funds )

म्यूच्यूअल फंड की स्कीम का एक और टाइप होता है डेट फंड । डेट फंड ऐसे म्यूच्यूअल फंड होते है, जिनके द्वारा फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज में निवेश किया जाता है, जैसे – कॉरपोरेट और गवर्नमेंट बांड, मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स आदि ।

डेट म्यूच्यूअल फंड में आपको इक्विटी म्यूच्यूअल फंड से कम रिटर्न मिलता है, लेकिन डेट फ़ंड में रिस्क भी इक्विटी फंड से कम होता है ।

डेट म्यूच्यूअल फ़ंड ऐसे इन्वेस्टर के लिए बेहतर होते है, जिनको रेगुलर इनकम कम रिस्क में चाहिए होती है । अगर आप एफडी में निवेश की सोच रहे है, तो आपके लिए डेट म्यूच्यूअल फ़ंड एक बेहतर विकल्प हो सकते है । इन फ़ंड में आपको एफडी से बेहतर रिटर्न देखने को मिल सकता है । 

ध्यान रखिये डेट फंड द्वारा अलग – अलग तरह की लिस्टेड और अनलिस्टेड सिक्योरिटीज में निवेश किया जाता है, जिनका maturity पीरियड और ब्याज की रेट अलग – अलग होती है।  ब्याज रेट में किसी भी तरह की मूवमेंट से डेट फंड की प्राइस में बदलाव आ सकता है ।

डेट फंड का यूज़ लोगों द्वारा अपने पैसों को पार्क करने के यूज़ में भी लिया जाता है, जैसे – आपके पास बैंक में कुछ एक्स्ट्रा बैलेंस है, जो कि आपके 2- 3 महीनों तक काम नही आएगा । इस केस में आप डेट फंड में पैसे रख सकते है ताकि आप बैंक ब्याज से ज्यादा उन पैसों पर कमा पाए ।

कुछ डेट म्यूच्यूअल फंड के एग्जाम्पल – ओवरनाइट फ़ंड, लिक्विड फंड, मनी मार्केट फंड, गिल्ट फ़ंड, फ्लोटर फंड etc. 

हाइब्रिड स्कीम (Hybrid Scheme)

अगर आप इक्विटी और डेट दोनों ही तरह के म्यूच्यूअल फंड में निवेश नही करना चाहते है, तो हाइब्रिड म्यूच्यूअल फ़ंड आपके लिए बेहतर हो सकते है ।

हाइब्रिड म्यूच्यूअल फंड ऐसे म्यूच्यूअल फंड होते है, जो कि इक्विटी और डेट दोनों तरह की सिक्योरिटीज में निवेश करते है । इस तरह के म्यूच्यूअल फंड में इक्विटी और डेट दोनों तरह के म्यूच्यूअल फंड के गुण होते है ।

हाइब्रिड म्यूच्यूअल फंड में इक्विटी म्यूच्यूअल फंड से कम रिस्क लेकिन डेट म्यूच्यूअल फंड से ज्यादा रिस्क होता है । इसलिए जो लोग कम रिस्क लेकर ज्यादा रिटर्न कमाना चाहते है, वे हाइब्रिड म्यूच्यूअल फंड में निवेश कर सकते है ।

हाइब्रिड फंड के अलग टाइप्स को सलेक्ट करके आप यह देख सकते है, कि आपको इक्विटी में कितना और डेट में कितना निवेश चाहिए ।

जैसे – अगर आप अग्रेसिव हाइब्रिड फंड सलेक्ट करते है, तो इसमे 65% से लेकर 80% तक इक्विटी में और 20 % से 35% तक डेट में निवेश किया जाता है । इसी तरह अगर आप बैलेंस्ड हाइब्रिड फंड सलेक्ट करते है, तो इसमे 40% से 60% इक्विटी में और 40% से 60% डेट में निवेश किया जाता है ।

हाइब्रिड फ़ंड के और भी टाइप्स होते है, जिनमे आप अपनी पसंद और जरूरत के अनुसार निवेश कर सकते है ।

सॉल्यूशन ओरिएंटेड म्यूच्यूअल फ़ंड (solution oriented mutual fund )

सॉल्यूशन ओरिएंटेड म्यूच्यूअल फ़ंड इन्वेस्टर की फ्यूचर जरूरतों को पूरा करने के लिए होते है, जैसे – रिटायरमेंट, चाइल्ड एजुकेशन , मैरिज आदि ।

रिटायरमेंट फ़ंड, चाइल्ड फंड आदि सॉल्यूशन ओरिएंटेड फ़ंड के एग्जाम्पल है । इन फंड में 5 वर्ष का लॉक इन पीरियड होता है । 5 वर्ष तक आप इन फंड्स से पैसे नही निकाल सकते है, जिसकी वजह से मार्केट के शार्ट टर्म में उतार – चढ़ाव का आपके ऊपर कम प्रभाव पड़ता है ।

सॉल्यूशन ओरिएंटेड फंड इक्विटी और डेट दोनों तरह की सिक्योरिटीज में निवेश करते है । इस तरह के फ़ंड में passively मैनेज फ़ंड होते है, इसलिए फ़ंड मैनेजर द्वारा जल्दी – जल्दी सिक्योरिटीज को खरीदा – बेचा नही जाता है । 

इन फंड्स द्वारा अच्छी क्वालिटी (quality ) के स्टॉक में निवेश किया जाता है, ताकि इन्वेस्टर को उनके फाइनेंसियल लक्ष्यों को प्राप्त करने में आसानी हो ।

अन्य स्कीम (other scheme )

इस तरह में म्यूच्यूअल फ़ंड में इंडेक्स फंड/ETF फ़ंड, FOF फ़ंड आदि आते है ।

इंडेक्स फ़ंड स्टॉक एक्सचैंज पर लिस्टेड होते है और अन्य कंपनियों के शेयर्स की तरह ट्रेड किये जाते है । इस तरह के फंड्स को स्टॉक एक्सचैंज के माध्यम से खरीदा – बेचा जा सकता है ।

इंडेक्स फ़ंड की यूनिट्स आपके डीमैट अकॉउंट में होल्ड रहती है । इन फंड्स का मिनिमम 95% इंडेक्स की सिक्योरिटीज में निवेशित होता है । इस तरह के म्यूच्यूअल फ़ंड में फंड मैनेजर द्वारा काफी कम बदलाव किए जाते है ।

इसी तरह Fund of Fund (FOF) द्वारा दूसरे म्यूच्यूअल फंड की यूनिट्स में इन्वेस्टमेंट किया जाता है । इस तरह के फ़ंड इक्विटी या डेट में निवेश करने के बजाय दूसरे म्यूच्यूअल फंड्स की यूनिट्स को होल्ड करना पसंद करते है ।

FOF फंड डोमेस्टिक और इंटरनेशनल हो सकते है ।

म्यूच्यूअल फ़ंड में नेट असेट्स वैल्यू (NAV) क्या होती है ?

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म्यूच्यूअल फ़ंड के बारे में जानकारी पूरी तब तक नही होगी जब तक आप नेट असेट्स वैल्यू यानी NAV को नही समझेंगे ।

म्यूच्यूअल फ़ंड की असेट्स का वैल्यूएशन हर बिज़नेस डे को किया जाता है । जिससे इन्वेस्टर को उसके इन्वेस्टमेंट की वैल्यू का पता चल सके । 

म्यूच्यूअल फ़ंड में निवेश करने पर टैक्सपेयर को म्यूच्यूअल फ़ंड द्वारा यूनिट्स जारी की जाती है । यह यूनिट इन्वेस्टर को NAV पर प्राप्त होती है । NAV की डिटेल्स म्यूच्यूअल फ़ंड द्वारा हर बिज़नेस डे पर अपडेट की जाती है ।

NAV कैसे निकाली जाती है ? 

NAV = Market value of investment held by the fund + value of current assets – value of current liabilities & provisions / no of units 

म्यूच्यूअल फ़ंड के कुल इन्वेस्टमेंट में उसकी असेट्स की वैल्यू को जोड़ा और लायबिलिटीइज को घटाया जाता है और इसके बाद इसमे यूनिट्स का भाग दिया जाता है ।

जैसे – किसी म्यूच्यूअल फ़ंड की 100 करोड़ की नेट असेट्स है और 10 लाख यूनिट्स है, तो इस केस में इस म्यूच्यूअल फ़ंड की NAV की 1000 रुपये की होगी (100 करोड़ / 10 लाख ) 

किसी इन्वेस्टर द्वारा 10,000 का निवेश किया जाता है, तो उसे 1000 की NAV से 10 यूनिट्स प्राप्त होगी । 

यह NAV हर बिज़नेस डे पर बदलती रहती है । जब भी आपको अपनी यूनिट्स को रिडीम (sale) करना होता है, तो आपको इस NAV के बेस पर ही पेमेंट किया जाता है ।

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