what is securities transaction tax (stt) – स्टॉक एक्सचेंज में ट्रेड की जाने वाली सिक्योरिटीज के खरीदने और बेचने पर सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स लगाया जाता है। इसे शार्ट में STT भी कहा जाता है।
यूनियन बजट 2004 में securities transaction tax को लाया गया था, जिसे पी चिदंबरम ने प्रस्तुत किया था।
सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स को लाने के पीछे कारण यह था कि काफी लोग सिक्योरिटीज के खरीदने और बेचने के ट्रांजैक्शनों को अपनी इनकम टैक्स रिटर्न में रिपोर्ट नहीं करते थे। जिसकी वजह से सरकार को टैक्स का काफी नुकसान होता था।
STT लाने की वजह से अब सिक्योरिटीज के सभी ट्रांजेक्शन पर सरकार की नजर रहने लग गयी। इससे कर चोरी को रोका जाना संभव हो पाया है।
आज के हमारे आर्टिकल (what is securities transaction tax stt) में हम सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स क्या होता है और इसके क्या प्रावधान होते है के बारे में चर्चा करेंगे।
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सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स क्या होता है ? what is securities transaction tax stt –
STT एक ऐसा टैक्स है, जो कि सिक्योरिटीज के खरीदने और बेचने पर लगाया जाता है। लेकिन, यह तब ही लगाया जायेगा जब सिक्योरिटीज किसी स्टॉक एक्सचेंज में खरीदी या बेचीं जा रही हो।
ओपन मार्केट में खरीदी या बेचीं जाने वाली सिक्योरिटीज पर STT नहीं लगाया जायेगा। साथ ही कमोडिटीज या करेंसी पर भी यह नहीं लगाया जाता।
सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स किसी भी सिक्योरिटी की वैल्यू पर लगाया जाता है। यानि जिस कीमत पर सिक्योरिटी खरीदी और बेचीं जाती है।
STT की रेट सेंट्रल गवर्नमेंट द्वारा निर्धारित की जाती है, जो कि सिक्योरिटीज के हिसाब से अलग अलग होती है। सेंट्रल गवर्नमेंट द्वारा समय -समय पर इन रेट्स में बदलाव भी किया जाता है।
securities transaction tax के प्रावधान भी टीडीएस की तरह ही होते है, जैसे ही कोई सिक्योरिटीज का ट्रांजेक्शन होता है उस पर STT लगा दिया जाता है।
securities transaction tax किन सिक्योरिटीज पर लगाया जाता है ?
the securities contract (regulation ) act 1956 उन सिक्योरिटीज के बारे में बताता है, जिन पर securities transaction tax लगाया जायेगा। यदि ये सिक्योरिटीज स्टॉक एक्सचेंज में ट्रेड करती है, तो इन पर STT लगाया जायेगा।
इस एक्ट के अनुसार STT लगाया जायेगा –
- शेयर्स, बांड्स, डिबेंचर्स, डिबेंचर्स स्टॉक या अन्य ऐसी ही मार्केटेबल सिक्योरिटीज पर,
- बिज़नेस ट्रस्ट की यूनिट्स,
- डेरीवेटिव ( derivatives )
- equity ओरिएंटेड म्यूच्यूअल फण्ड यूनिट्स,
- सरकार की equity नेचर की सिक्योरिटीज,
- securitisation & रिकंस्ट्रक्शन ऑफ़ फाइनेंसियल असेट्स & एनफोर्समेंट ऑफ़ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट 2002 के सेक्शन 2(zg) में डिफाइंड सिक्योरिटी receipt,
- राइट्स और इंटरेस्ट इन सिक्योरिटीज
- initial पब्लिक ऑफर (आईपीओ ) में पब्लिक को बेचे जाने वाले अनलिस्टेड शेयर्स।
सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स किस रेट से लगाया जायेगा ?
STT अलग -अलग सिक्योरिटीज पर अलग -अलग रेट से लगाया जाता है।
जैसे कि –
टैक्सेबल सिक्योरिटीज | ट्रांजेक्शन टाइप | stt रेट | किस पर लगाया जायेगा |
डिलीवरी बेस्ड equity | purchase | 0.10% | purchaser |
डिलीवरी बेस्ड equity | sell | 0.10% | seller |
derivatives फ्यूचर | sell | 0.01% | seller |
derivatives ऑप्शन | sell | 0.05% | seller |
डेरिवेटिव्स ऑप्शन (option exercised) | sell | 0.125% | purchaser |
equity म्यूच्यूअल फण्ड (क्लोज एंडेड ) | sell | 0.001% | seller |
equity म्यूच्यूअल फण्ड (ओपन एंडेड ) | sell | .025% | seller |
equity म्यूच्यूअल फण्ड इंट्राडे (नॉन डिलीवरी ) | sell | .025% | seller |
रेट के बारे में अधिक जानने के लिए – https://www.paisabazaar.com/mutual-funds/securities-transaction-tax-stt-mutual-funds/
STT का कलेक्शन और रिकवरी किसके द्वारा की जाती है ?
जिस भी स्टॉक एक्सचेंज में सिक्योरिटीज को ख़रीदा और बेचा जाता है, उस स्टॉक एक्सचेंज पर सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स के कलेक्शन की जिम्मेदारी होती है। अगर स्टॉक एक्सचेंज किसी ट्रांजेक्शन पर STT कलेक्ट नहीं करता तो उस पर इंटरेस्ट और पेनल्टी लगायी जायेगी।
इसी तरह म्यूच्यूअल फण्ड की यूनिट्स को बेचने पर म्यूच्यूअल फण्ड की STT लगाने की जिम्मेदारी होती है। और इनिशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ ) में यह जिम्मेदारी लीड मर्चेंट बैंकर की होती है।
टीडीएस की तरह ही securities transaction tax को काटने के बाद इसे सरकार को जमा करवाना होता है। जिस महीने में stt का कलेक्शन किया गया था ,उस महीने के बाद अगले महीने की 7 तारीख तक इसे जमा करवाना होता है। अन्यथा इंटरेस्ट और पेनल्टी, दोनों लगायी जायेगी।
सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स कलेक्ट करने के बाद स्टॉक एक्सचेंज या म्यूच्यूअल फण्ड को रिटर्न भी फाइल करनी होती है। यह रिटर्न form no. 1 (स्टॉक एक्सचेंज के केस में ) और form no. 2 (म्यूच्यूअल फण्ड के केस ) में भरी जाती है।
इंटरेस्ट और पेनल्टी –
यदि सिक्योरिटीज ट्रांजेक्शन टैक्स कलेक्ट किया जाता है और उसको सरकार को जमा नहीं करवाया जाता है, तो 1 % की रेट से सिंपल इंटरेस्ट लगाया जायेगा।
पेनल्टी – यह टैक्स और इंटरेस्ट के अलावा लगायी जायेगी।
यदि स्टॉक एक्सचेंज या म्यूच्यूअल फण्ड द्वारा STT कलेक्ट नहीं किया जाता | जितना stt कलेक्ट नहीं किया गया उसके 100 % के बराबर |
यदि STT कलेक्ट करने के बाद समय पर सरकार को जमा नहीं करवाया जाता | rs 1000 प्रतिदिन, जब तक जमा नहीं किया जायेगा |
स्टॉक एक्सचेंज या म्यूच्यूअल फण्ड द्वारा रिटर्न जमा नहीं की जाती | rs 100 प्रतिदिन, जब तक रिटर्न जमा नहीं की जाती |
स्टॉक एक्सचेंज या म्यूच्यूअल फण्ड नोटिस का जंवाब नहीं देते | rs 10,000 प्रति दिन |
इनकम टैक्स और सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स –
जो भी सिक्योरिटीज स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेड की जाती है, उस पर securities transaction tax जरूर लगाया जाता है। सिक्योरिटीज के ट्रांजेक्शन को इनकम टैक्स रिटर्न में रिपोर्ट किया जाता है, जिससे इन ट्रांजेक्शन पर टैक्स लगाया जा सके।
लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह आता है कि क्या एक ही ट्रांजेक्शन पर दो बार टैक्स लगाया जायेगा ?
तो इसका जवाब होगा नहीं, क्योकि सिक्योरिटीज के ट्रांजेक्शन पर जो STT लगाया जाता है, उसकी छूट इनकम टैक्स एक्ट में दी जाती है।
STT की छूट इनकम टैक्स में कैसे प्राप्त हो इसे समझने के लिए पहले यह जानना होगा कि सिक्योरिटीज की इनकम को आप कैपिटल गेन हेड में रिपोर्ट कर रहे है या बिज़नेस या प्रोफेशन हेड में।
सिक्योरिटीज की इनकम कैपिटल गेन हेड में रिपोर्ट करने पर –
यदि सिक्योरिटीज के बेचने से कोई प्रॉफिट हो रहा है, तो इसे लॉन्ग टर्म या शार्ट टर्म में अलग किया जाता है। शार्ट टर्म कैपिटल गेन पर 15 % की रेट से टैक्स लगाया जायेगा।
लेकिन, अगर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन होता है, तो टैक्स तभी लगाया जायेगा , जब यह 1 लाख से अधिक होगा। यदि 1 लाख से अधिक है, तो 10 % की रेट से टैक्स लगाया जायेगा और 1 लाख से कम है तो कोई टैक्स नहीं लगाया जायेगा।
STT की कैपिटल गेन हेड में इनकम शो करने पर कोई छूट नहीं दी जाती।
सिक्योरिटीज की इनकम बिज़नेस या प्रोफेशन हेड में रिपोर्ट करने पर –
यदि ट्रेडिंग की इनकम बिज़नेस या प्रोफेशन हेड में रिपोर्ट की जा रही है, तो STT की सेक्शन 36 में बिज़नेस expenditure के रूप में छूट ली सकती है।
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