बिज़नेस और प्रोफेशन में इन खर्चों की छूट लेकर कम करे अपना प्रॉफिट – tax deductible expenses

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tax deductible expenses

tax deductible expenses – किसी भी पर्सन की टैक्सेबल बिज़नेस इनकम निकालने के लिए यह जानना बहुत जरुरी है कि कौनसे खर्चो की आपको छूट दी जायेगी।

यदि, किसी भी तरह के खर्चे की छूट आपको इनकम टैक्स एक्ट के अनुसार दी जाती है तो वह सभी तरह के करदाताओं पर एप्लीकेबल होती है। यानि कि आप चाहे कंपनी हो, फर्म हो या कोई LLP .

बिज़नेस की इनकम में से कुछ खर्चों की छूट निर्धारित शर्तों के पूरी होने पर भी ही जाती है। यदि ये शर्ते पूरी नहीं होती तो आपको उन खर्चों की छूट नहीं दी जायेगी , भले ही ये खर्चे बिज़नेस के लिए करने जरुरी हो,

जैसे – निर्धारित सीमा से अधिक कैश में किये गए खर्चे, जिन खर्चों पर टीडीएस काटना जरुरी था लेकिन काटा नहीं गया हो , किसी भी रिलेटिव को जरुरत से ज्यादा किये गए पेमेंट आदि।

इसलिए किसी भी खर्चे की इनकम टैक्स में छूट लेने के लिए यह जानना बहुत जरुरी है कि उसकी छूट इनकम टैक्स एक्ट के हिसाब से आपको दी जायेगी या नहीं।

आज के आर्टिकल (tax deductible expenses ) में हम सिर्फ उन खर्चो के बारे में जानेंगे जिनकी आपको इनकम टैक्स एक्ट 1961 के अनुसार छूट दी जाती है।

बिज़नेस के उपयोग में आने वाली बिल्डिंग का रेंट, रेट्स, टैक्स, मरम्मत और इन्शुरन्स का खर्चा –  

जब भी कोई बिज़नेस किया जाता है तो उसके लिए बिल्डिंग (ऑफिस ,शॉप या अन्य कोई जगह ) की आवश्यकता होती है। यह बिल्डिंग आपकी खुद की हो सकती है या फिर किराये पर भी ली जा सकती है।

यदि आपने कोई बिल्डिंग बिज़नेस करने के लिए किराये पर ली है, तो आपको इस बिल्डिंग के किराये की छूट दी जायेगी। साथ ही यदि आपने इसकी मरम्मत पर कोई खर्चा किया हो या इस बिल्डिंग की सुरक्षा के लिए कोई इन्शुरन्स प्रीमियम का भुगतान किया हो उसकी छूट दी जायेगी।

इसके अलावा आपने यदि land revenue, लोकल रेट्स या म्युनिसिपल टैक्स का भुगतान किया है, तो उसकी भी छूट आपको दी जायेगी।

लेकिन अगर बिल्डिंग के स्वामी आप खुद है तो बिल्डिंग के किराये की छूट के अलावा आप ऊपर बताई गयी सभी छूट प्राप्त करने के हक़दार होंगे।


मशीनरी, प्लांट और फर्नीचर के रिपेयर और इन्शुरन्स का खर्चा (section 31 ) – 

इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 31 में आप बिज़नेस के काम आने वाली मशीनरी, प्लांट और फर्नीचर के रिपेयर और इन्शुरन्स के खर्चे की छूट ले सकते है।

लेकिन, इस सेक्शन में आपको सिर्फ रिपेयर और इन्शुरन्स की छूट ही दी जायेगी। यदि आप इन मशीनरी या फर्नीचर के लिए किसी किराये का भी भुगतान करते है तो इस किराये की राशि की छूट आपको इस सेक्शन में नहीं दी जायेगी।

लेकिन, मशीनरी, प्लांट और फर्नीचर के लिए भुगतान किये गए किराये की छूट आप सेक्शन 37 में क्लेम कर सकते है।

डेप्रिसिएशन – Depreciation (section 32 ) 

यदि आप अपने बिज़नेस के लिए किसी भी असेट्स को काम में लेते है , तो सेक्शन 32 में आप असेट्स के डेप्रिसिएशन की छूट ले सकते है।

इन असेट्स के डेप्रिसिएशन की छूट आप इनकम टैक्स एक्ट में बताये गए तरीके और रेट्स से ले सकते है।

डेप्रिसिएशन के बारे में अधिक जानकारी के लिए depreciation क्या है, किसको छूट मिलती है, रेट्स और अन्य नियम क्या होते है ? देख सकते है।

कर्मचारियों की हेल्थ पर लिए गए insurance की छूट –

यदि कोई एम्प्लायर अपने कर्मचारियों की हेल्थ के लिए किसी insurance प्रीमियम का भुगतान करता है, तो वह चुकाये गए प्रीमियम की छूट क्लेम कर सकता है। लेकिन इस छूट को क्लेम करने के कुछ कंडीशन का पूरा होना जरुरी है।

ये कंडीशन है –

  • इन्शुरन्स प्रीमियम कर्मचारियों की हेल्थ पर लिया जाना चाहिए ,
  • प्रीमियम का भुगतान कैश के अलावा अन्य किसी मोड में किया जाना चाहिए, और
  • insurance प्रीमियम जनरल इन्शुरन्स कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया की किसी स्कीम के तहत लिया जाना चाहिये और यह सेंट्रल गवर्नमेंट द्वारा एप्रूव्ड होना चाहिए।

अगर यह तीनो कंडीशन पूरी होती है तो भुगतान किये गए प्रीमियम की छूट ली जा सकती है।

स्टॉक इन्शुरन्स – tax deductible expenses

अगर कोई टैक्सपेयर अपने बिज़नेस & प्रोफेशन के लिए काम में आने वाले स्टॉक की सुरक्षा के लिए कोई insurance लेता है , तो इसके लिए चुकाए गए प्रीमियम की छूट भी वह क्लेम कर सकता है।

कर्मचारियों को दिया जाने वाले बोनस या कमीशन – 

किसी एम्प्लोयी को अगर बोनस या कमीशन का पेमेंट किया जाता है , तो एम्प्लायर द्वारा दिए जाने वाले इस बोनस और कमीशन की भी छूट क्लेम की जा सकती है।

लेकिन, इस बोनस और कमीशन की छूट उसी केस में दी जाएगी, जब यह बोनस और कमीशन उस एम्प्लोयी को प्रॉफिट या डिविडेंड के रूप में नहीं दिया जाने वाला हो।

उधार ली जाने वाली राशि के ब्याज की छूट –

कई बार एम्प्लॉयर अपने बिज़नेस या प्रोफेशन को चलाने के लिए लोन लेता है, जैसे – बिज़नेस के लिए स्टॉक खरीदने के लिए या अपने लेनदारों को भुगतान करने के लिए या किसी अन्य कारण से।

इस लिए गए लोन पर चुकाए गए ब्याज की भी एम्प्लायर को छूट प्राप्त होती है।

लेकिन, यदि लोन किसी कैपिटल असेट्स को खरीदने के लिए लिया जा रहा है , तो उस असेट्स को जब तक उपयोग में लाया जाता है तब तक के पीरियड के इंटरेस्ट की छूट नहीं दी जायेगी।


general deduction (सेक्शन 37 ) – tax deductible expenses

बिज़नेस या प्रोफेशन में कुछ खर्चे ऐसे भी होते है जिनको इनकम टैक्स एक्ट में कहीं भी नहीं बताया गया है। यानि अगर बिज़नेस या प्रोफेशन में ऐसे खर्चे किये जाते है , जिनकी छूट के बारे में इनकम टैक्स एक्ट में नहीं बताया गया है तो उनकी छूट को सेक्शन 37 में क्लेम किया जा सकता है।

सेक्शन 37 में किसी भी खर्चे की छूट लेने के लिए कुछ कंडीशन होती है। इन कंडीशन को पूरा करके कोई भी छूट क्लेम की जा सकती है।

ये कण्डीशन है –
  • यह खर्चा उसी बिज़नेस का होना चाहिए जिसकी इनकम में से इसकी छूट ली जा रही हो।
  • किया गया खर्चा पूरी तरह से बिज़नेस के उद्देश्य के लिए होना चाहिये।
  • यह उसी वर्ष में किया गया होना चाहिये जिस वर्ष में इसकी छूट क्लेम की जा रही हो।
  • किसी भी पर्सनल खर्चे की सेक्शन 37 में छूट नहीं दी जायेगी।
  • section 37 में किया गया खर्चा किसी भी तरह से ऐसा नहीं होना चाहिये जिसको करने के लिए कानून में मनाही हो। जैसे – रिश्वत।

अगर आप कोई भी बिज़नेस या प्रोफेशन करते है, तो ऊपर बताये गए खर्चे की छूट ले सकते है। लेकिन, अगर आप presumptive taxation scheme को अपनाते है तो इन सभी खर्चों की छूट आपको दी हुई मानी जायेगी।

इस स्कीम में आपको इन खर्चो को अलग -अलग क्लेम नहीं करना होता, बल्कि अपने टर्नओवर का एक निश्चित परसेंटेज को अपनी इनकम दिखाना होता है। इस स्कीम को अपनाने पर आपके द्वारा भरे जाने वाली इनकम टैक्स रिटर्न का फॉर्म भी अलग होता है।

इस स्कीम के बारे में अधिक जानकारी के लिए यदि आप भी बिज़नेस करते है तो ये स्कीम्स बचा सकती आपका टैक्स – Presumptive Taxation Scheme देख सकते है।

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